BA Semester-1 Hindi Kavya - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2639
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य

अध्याय - 7

आधुनिक काल की सामाजिक, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, नामकरण की प्रवृत्तियाँ, 1857 का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम एवं सांस्कृतिक पुनर्जागरण एवं हिन्दी नवजागरण

 

प्रश्न- आधुनिक काल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।

उत्तर -

हिन्दी के प्रसिद्ध आलोचक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल का प्रारम्भ सम्वत् 1900 से माना है। वस्तुतः आधुनिक हिन्दी साहित्य का प्रादुर्भाव भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से होता है। हिन्दी साहित्य में नवयुग की चेतना का विकास और भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का उदय दोनों ही घटनाएँ एक-दूसरे से घुली मिली हैं। हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल में नवयुग की चेतना का विकास बड़ी महत्वपूर्ण घटना है। इसका बीज इसी युग की राजनीतिक चेतना, सामाजिक अवस्था, धार्मिक परिस्थितियों एवं साहित्यिक पृष्ठभूमि में मिलता है।

राजनीतिक चेतना - सन् 1957 के प्लासी के युद्ध ने अंग्रेजों की नीव भारत में दृढ़ कर दी और धीरे-धीरे ईस्ट इंडिया कम्पनी का शासन सारे भारत में फैल गया। ज्यों-ज्यों कम्पनी का प्रभाव बड़ा त्यों- त्यों उसके अधिकारियों के अत्याचार भी बढ़े। सन् 1854 में झाँसी को 'लैप्स की नीति' के द्वारा कम्पनी ने अपने शासन में ले लिया। देश में प्रजा और देशी राजा दोनों ही कम्पनी के अत्याचार पूर्ण शासन से घबराये हुए थे। राजनीतिक चेतना का दूसरा काल सन् 1905 से आरम्भ होता है, अब काँग्रेस आवेदन और प्रार्थना की नरम नीति को छोड़ने लगी थी, और उसने 'स्वराज हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। की घोषणा कर दी। इसी समय काँग्रेस में दो दल हो गए गरम दल तथा नरम दल। सन् 1906 में मिण्टो मार्ले सुधार कानून पास हुआ इसने मुसलमानों को अलग प्रतिनिधित्व दिया, जिससे हिन्दू मुस्लिम एकता को बड़ी ठेस पहुँची। बड़े प्रयत्न से काँग्रेस के दोनों दलों में भी एकता हो गई। भारत ने अपनी विदेश नीति के लिए वह प्रशंसा का पात्र है और अपनी विदेश नीति में तटस्थता को सर्वाधिक महत्व दिया है। वह गुटों में बंधा नही हैं सन् 1975 में श्रीमती इन्द्रागाँधी ने राष्ट्र को अनुशासित करने के लिए आपातकालीन स्थिति घोषित करके एक क्रान्तिकारी कदम उठाया था, जिसके कुछ दूरगामी एवं स्वस्थ्य प्रभाव हुये।

सामाजिक पृष्ठभूमि - भारत में अंग्रेजी शासन एक महत्वपूर्ण घटना है, जिससे भारत के सामाजिक जीवन में जो चेतना आई उसका कारण आंग्ल-भारतीय सम्पर्क है। सामाजिक क्षेत्र की परम्पराओं एवं रूढ़ियों पर आंग्ल सम्पर्क ने आघात किया जो भारतीय दृष्टिकोण परिवर्तन करने में सहायक सिद्ध हुआ। हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल के द्वितीय उत्थान में सामाजिक क्षेत्र की अशान्ति दूर हो गई और नवीन व्यापक दृष्टिकोण जीवन के नवीन मूल्य के रूप में स्थापित हो गया। यही कारण है कि इस युग में पूर्व युग के वाद-विवाद, आलोचना- प्रत्यालोचना का प्रायः अभाव है। इस युग के विचारकों ने समाज सुधार की आवश्यकता को बहुत महत्व दिया। और बड़े शान्त चित्त से सामाजिक कुरीतियों को दूर करने सुझाव दिये। इस कारण इस युग के विचारकों में मानवता के प्रति विस्तृत दृष्टिकोण का प्रादुर्भाव हुआ। देश के महान विचारकों ने निर्धन और शोषित समाज के प्रति संवेदना और नारी की स्थिति के प्रति करुणा व्यक्त की, उसकी आँचल में दूध और आँखों में पानी वाली स्थिति का चित्रण करके गम्भीर सहानुभूति एवं उच्च भावना अभिव्यक्त की।

आर्थिक पृष्ठभूमि - अब तक हमने आधुनिककाल की सामाजिक अवस्था का वर्णन किया। राजनीतिक चेतना और सामाजिक अवस्था के मूल में देश की जनता की आर्थिक स्थिति रहती है। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता युद्ध के पश्चात् सत्ता का हस्तान्तरण हुआ और यह आशा बँधी कि देश की आर्थिक व्यवस्था में सुधार होगा, क्योंकि एक व्यापारी कम्पनी से तो इस प्रकाश की आशा करना समीचीन नहीं था। चतुर्थ उत्थान में वर्ग संघर्ष ने और जोर पकड़ा। बेरोजगारी, महँगाई, पूँजी का कुछ लोगों के पास जमा होना और देशव्यापी दरिद्रता से भारतीय आर्थिक स्थिति बहुत बिगड़ी। पूँजीवाद के मानव समाज में शुद्ध आर्थिक सम्बन्ध स्थापित कर दिये थे। इसीलिए श्रमिक वर्ग के चेतना का आधार भी शुद्ध आर्थिक स्वार्थ थे। वे अपना संगठन दृढ़ कर रहे थे। धीरे-धीरे इस युग के विचारकों का ध्यान यथार्थ की कठोर परिस्थितियों एवं निम्नवर्गी की दशा ने पूर्ण रूप से अपनी ओर केन्द्रित कर लिया। वर्ग संघर्ष से व्यापक जागृति हुई और दलितवर्ग विद्रोह करने के लिए तत्पर हुए। आर्थिक सम्बन्धों में कल्पना और भावुकता न्यून से न्यूनतम होती गई और यथार्थवाद को महत्व मिला।

सांस्कृतिक पृष्ठभूमि - मुगलों के पराभव होने के साथ-साथ ही हिन्दू जाति की कट्टरपंथी शाखा का ह्रास होने लगा। नवयुग की चेतना की सबसे बड़ी महत्वपूर्ण बात। धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टिकोण में परिवर्तन हैं। इस युग में वर्तमान सांस्कृतिक भावना का प्रभाव पड़ता है। अन्य धर्मों की सहिष्णुता इस युग की धार्मिक परिस्थितियों की विशेषता है- उपासना की पद्धति पर भी परिवर्तन हुआ। द्वितीय उत्थान काल में सांस्कृतिक चेतना का प्रमुख आधार मानवतावादी विचारधारा बनी, धीरे-धीरे इस मानवतावादी विचारधारा का विकास हुआ। इस प्रकार राष्ट्रीय एकता की मांग का नया अध्याय खुला और आज धर्म का रूप प्राचीनकाल से बहुत कुछ बदल गया है। भारतीय जनतन्त्र ने इस दिशा में धर्मनिरपेक्ष शासन को अपना आदर्श बनाया। श्रीमती इन्द्रा गाँधी ने इस दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास किये हैं। और साम्प्रदायिक प्रवृत्ति का निर्मूलन करने के लिए कारगर कदम उठाएँ हैं।

1857 की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण काल

सन् 1857 में भारतियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध प्रथम स्वतन्त्रता युद्ध छेड़ा एक वर्ष भी नहीं बीत पाया और दासता के प्रति किया गया विद्रोह दबा दिया गया। ईस्ट इण्डिया कम्पनी का शासन समाप्त करके ब्रिटेन की सरकार ने भारत का शासन अपने हाथ में ले लिया। महारानी विक्टोरिया ने घोषणा की, जिसमें भारतवासियों को बड़े मधुर आश्वासन दिये गये। भारतियों में एक नवीन चेतना और आशा की लहर दौड़ गई। कम्पनी के अत्याचारपूर्ण शासन और डलहौजी की नीति को देखते हुए विक्टोरिया का शासन भारत की जनता के लिए सन्तोष का विषय था, इसीलिए विक्टोरिया के मरने पर भारतवासियों ने बहुत दुःख हुआ। 16वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में देश की जनता में अंग्रेजी राज के प्रति राज्य भक्ति दिखाने के और उसके प्रति सुधार के प्रार्थना करने की प्रवृत्ति थी, जिससे अंग्रेजी शासन का बोलबाला हो गया। इधर इण्डियन नेशनल काँग्रेस ने भारतीयों की राजनीतिक चेतना को और अधिक विकसित किया। कॉंग्रेस की स्थापना से जनता के सामने कुछ राजनीतिक सिद्धान्त उपस्थित हुए, जिनकी प्राप्ति के लिए देश की जनता में अदम्य उत्साह छा गया। इटली के स्वतन्त्रता युद्ध, आयरलैण्ड के होमरूल आन्दोलन तथा फ्राँस की राज्यक्रान्ति के इतिहास ने जनता की विरोधी भावना के और भी इच्छुक हो गए। हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल में नव युग के इस राजनीतिक चेतना का प्रभाव भारतेन्दु युग में दृष्टिगोचर होता है।

भारतेन्दु युग पुनर्जागरण काल भारतेन्दु युग तथा पुनर्जागरण काल का उदय हिन्दी कविता के लिए नवीन जागरण के संदेशवाहक के युग के रूप में हुआ था, किन्तु इसके सीमांकन के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद हैं। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के रचनाकाल को दृष्टिगत में रखकर संवत् 1625 से 1650 की अवधि को नयी धारा अथवा प्रथम उथान की संज्ञा दी है। इस काल को हरिश्चन्द्र तथा उसके सहयोगी लेखकों के कृतित्व से समृद्ध माना है, किन्तु उनके द्वारा निर्धारित काल अवधि से कुछ अन्य लेखकों का वैमत्य है। यह उल्लेखनीय है कि भारतेन्दु द्वारा सम्पादित पत्रिका 'कविवचन सुधा' का प्रकाशन 1767 ई. में हुआ था, अतः भारतेन्दु युग का उदय 1625 से मानना उचित है। इसी तर्क का अनुसरण करते हुए सरस्वती के प्रकाशन वर्ष 1600 ई. को भारतेन्दु युग की परिसमाप्ति का सूचक माना जा सकता है। यह ठीक है कि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के देहावसान के साथ ही भारतेन्दु युग की समाप्ति मानकर उसके समकालीन कवियों द्वारा बाद में रचित कृतियों को ध्यान में रखते हुए इस काल की व्याप्ति 1600 ई. है। इसी भाँति किसी नये युग का शुभारम्भ भी सहसा नहीं होता, उसके स्वरूप निर्माण की प्रक्रिया के बीज दस-बीस वर्ष पहले तक के साहित्य में विद्यमान रहते हैं। 1643 से 1667 ई. तक का कृतित्व न तो पूर्णतः रीतिकाल के प्रभाव क्षेत्र के अन्तर्गत आता है और न इसमें भारतेन्दु युग की पुर्नजागरण प्रवृत्तियाँ विद्यमान हैं, अतः इसका अनुशीलन भारतेन्दु युग की पृष्ठभूमि के रूप में किया जाना चाहिए। भारतेन्दु के पूर्ववर्ती कवियों की भाषा ब्रजभाषा रचनाओं को तीन वर्गों में विभाजिक किया जा सकता है भक्तिकाव्य, श्रृंगार रस का काव्य और रीति निरूपण।

उन्होनें प्रबन्ध और मुक्तक दोनों शैलियों में लगभग अठ्ठाइस कृतियों की रचना की थी। मुद्रण यन्त्रों के विस्तार और राष्ट्रीय भावना के विकास के लिए उचित वातावरण बन सका - समाचार पत्रों के प्रकाशन ने भी जन-जागरण में योगदान दिया। परिणामस्वरूप तत्कालीन साहित्य चेतना, मध्यकालीन रचना प्रवृत्तियों तक ही सीमित न रहकर नवीन साहित्य दिशाओं की ओर उन्मुख होने लगी।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भारतीय ज्ञान परम्परा और हिन्दी साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा में शुक्लोत्तर इतिहासकारों का योगदान बताइए।
  3. प्रश्न- प्राचीन आर्य भाषा का परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
  4. प्रश्न- मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
  5. प्रश्न- आधुनिक आर्य भाषा का परिचय देते हुए उनकी विशेषताएँ बताइए।
  6. प्रश्न- हिन्दी पूर्व की भाषाओं में संरक्षित साहित्य परम्परा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  7. प्रश्न- वैदिक भाषा की ध्वन्यात्मक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का इतिहास काल विभाजन, सीमा निर्धारण और नामकरण की व्याख्या कीजिए।
  9. प्रश्न- आचार्य शुक्ल जी के हिन्दी साहित्य के इतिहास के काल विभाजन का आधार कहाँ तक युक्तिसंगत है? तर्क सहित बताइये।
  10. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  11. प्रश्न- आदिकाल के साहित्यिक सामग्री का सर्वेक्षण करते हुए इस काल की सीमा निर्धारण एवं नामकरण सम्बन्धी समस्याओं का समाधान कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य में सिद्ध एवं नाथ प्रवृत्तियों पूर्वापरिक्रम से तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  13. प्रश्न- नाथ सम्प्रदाय के विकास एवं उसकी साहित्यिक देन पर एक निबन्ध लिखिए।
  14. प्रश्न- जैन साहित्य के विकास एवं हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उसकी देन पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  15. प्रश्न- सिद्ध साहित्य पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- आदिकालीन साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्य में भक्ति के उद्भव एवं विकास के कारणों एवं परिस्थितियों का विश्लेषण कीजिए।
  18. प्रश्न- भक्तिकाल की सांस्कृतिक चेतना पर प्रकाश डालिए।
  19. प्रश्न- कृष्ण काव्य परम्परा के प्रमुख हस्ताक्षरों का अवदान पर एक लेख लिखिए।
  20. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  21. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  22. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  24. प्रश्न- भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  25. प्रश्न- उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल ) की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, काल सीमा और नामकरण, दरबारी संस्कृति और लक्षण ग्रन्थों की परम्परा, रीति-कालीन साहित्य की विभिन्न धारायें, ( रीतिसिद्ध, रीतिमुक्त) प्रवृत्तियाँ और विशेषताएँ, रचनाकार और रचनाएँ रीति-कालीन गद्य साहित्य की व्याख्या कीजिए।
  26. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य प्रवृत्तियों का परिचय दीजिए।
  27. प्रश्न- हिन्दी के रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  28. प्रश्न- बिहारी रीतिसिद्ध क्यों कहे जाते हैं? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
  29. प्रश्न- रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है?
  30. प्रश्न- आधुनिक काल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  31. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  33. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- भारतेन्दु युग के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
  35. प्रश्न- भारतेन्दु युग के गद्य की विशेषताएँ निरूपित कीजिए।
  36. प्रश्न- द्विवेदी युग प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
  37. प्रश्न- द्विवेदी युगीन कविता के चार प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये। उत्तर- द्विवेदी युगीन कविता की चार प्रमुख प्रवृत्तियां निम्नलिखित हैं-
  38. प्रश्न- छायावादी काव्य के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- छायावाद के दो कवियों का परिचय दीजिए।
  40. प्रश्न- छायावादी कविता की पृष्ठभूमि का परिचय दीजिए।
  41. प्रश्न- उत्तर छायावादी काव्य की विविध प्रवृत्तियाँ बताइये। प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नयी कविता, नवगीत, समकालीन कविता, प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- प्रयोगवादी काव्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
  43. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
  44. प्रश्न- हिन्दी की नई कविता के स्वरूप की व्याख्या करते हुए उसकी प्रमुख प्रवृत्तिगत विशेषताओं का प्रकाशन कीजिए।
  45. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  46. प्रश्न- गीत साहित्य विधा का परिचय देते हुए हिन्दी में गीतों की साहित्यिक परम्परा का उल्लेख कीजिए।
  47. प्रश्न- गीत विधा की विशेषताएँ बताते हुए साहित्य में प्रचलित गीतों वर्गीकरण कीजिए।
  48. प्रश्न- भक्तिकाल में गीत विधा के स्वरूप पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  49. अध्याय - 13 विद्यापति (व्याख्या भाग)
  50. प्रश्न- विद्यापति पदावली में चित्रित संयोग एवं वियोग चित्रण की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  51. प्रश्न- विद्यापति की पदावली के काव्य सौष्ठव का विवेचन कीजिए।
  52. प्रश्न- विद्यापति की सामाजिक चेतना पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  53. प्रश्न- विद्यापति भोग के कवि हैं? क्यों?
  54. प्रश्न- विद्यापति की भाषा योजना पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
  55. प्रश्न- विद्यापति के बिम्ब-विधान की विलक्षणता का विवेचना कीजिए।
  56. अध्याय - 14 गोरखनाथ (व्याख्या भाग)
  57. प्रश्न- गोरखनाथ का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।
  58. प्रश्न- गोरखनाथ की रचनाओं के आधार पर उनके हठयोग का विवेचन कीजिए।
  59. अध्याय - 15 अमीर खुसरो (व्याख्या भाग )
  60. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  63. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  64. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  65. अध्याय - 16 सूरदास (व्याख्या भाग)
  66. प्रश्न- सूरदास के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- "सूर का भ्रमरगीत काव्य शृंगार की प्रेरणा से लिखा गया है या भक्ति की प्रेरणा से" तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
  68. प्रश्न- सूरदास के श्रृंगार रस पर प्रकाश डालिए?
  69. प्रश्न- सूरसागर का वात्सल्य रस हिन्दी साहित्य में बेजोड़ है। सिद्ध कीजिए।
  70. प्रश्न- पुष्टिमार्ग के स्वरूप को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए?
  71. प्रश्न- हिन्दी की भ्रमरगीत परम्परा में सूर का स्थान निर्धारित कीजिए।
  72. अध्याय - 17 गोस्वामी तुलसीदास (व्याख्या भाग)
  73. प्रश्न- तुलसीदास का जीवन परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  74. प्रश्न- तुलसी की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  75. प्रश्न- अयोध्याकांड के आधार पर तुलसी की सामाजिक भावना के सम्बन्ध में अपने समीक्षात्मक विचार प्रकट कीजिए।
  76. प्रश्न- "अयोध्याकाण्ड में कवि ने व्यावहारिक रूप से दार्शनिक सिद्धान्तों का निरूपण किया है, इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  77. प्रश्न- अयोध्याकाण्ड के आधार पर तुलसी के भावपक्ष और कलापक्ष पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- 'तुलसी समन्वयवादी कवि थे। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- तुलसीदास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।
  80. प्रश्न- राम का चरित्र ही तुलसी को लोकनायक बनाता है, क्यों?
  81. प्रश्न- 'अयोध्याकाण्ड' के वस्तु-विधान पर प्रकाश डालिए।
  82. अध्याय - 18 कबीरदास (व्याख्या भाग)
  83. प्रश्न- कबीर का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
  84. प्रश्न- कबीर के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- कबीर के काव्य में सामाजिक समरसता की समीक्षा कीजिए।
  86. प्रश्न- कबीर के समाज सुधारक रूप की व्याख्या कीजिए।
  87. प्रश्न- कबीर की कविता में व्यक्त मानवीय संवेदनाओं पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- कबीर के व्यक्तित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  89. अध्याय - 19 मलिक मोहम्मद जायसी (व्याख्या भाग)
  90. प्रश्न- मलिक मुहम्मद जायसी का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  91. प्रश्न- जायसी के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  92. प्रश्न- जायसी के सौन्दर्य चित्रण पर प्रकाश डालिए।
  93. प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  94. अध्याय - 20 केशवदास (व्याख्या भाग)
  95. प्रश्न- केशव को हृदयहीन कवि क्यों कहा जाता है? सप्रभाव समझाइए।
  96. प्रश्न- 'केशव के संवाद-सौष्ठव हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि हैं। सिद्ध कीजिए।
  97. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षेप में जीवन-परिचय दीजिए।
  98. प्रश्न- केशवदास के कृतित्व पर टिप्पणी कीजिए।
  99. अध्याय - 21 बिहारीलाल (व्याख्या भाग)
  100. प्रश्न- बिहारी की नायिकाओं के रूप-सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  101. प्रश्न- बिहारी के काव्य की भाव एवं कला पक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  102. प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- बिहारी ने किस आधार पर अपनी कृति का नाम 'सतसई' रखा है?
  104. प्रश्न- बिहारी रीतिकाल की किस काव्य प्रवृत्ति के कवि हैं? उस प्रवृत्ति का परिचय दीजिए।
  105. अध्याय - 22 घनानंद (व्याख्या भाग)
  106. प्रश्न- घनानन्द का विरह वर्णन अनुभूतिपूर्ण हृदय की अभिव्यक्ति है।' सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
  107. प्रश्न- घनानन्द के वियोग वर्णन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  108. प्रश्न- घनानन्द का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
  109. प्रश्न- घनानन्द के शृंगार वर्णन की व्याख्या कीजिए।
  110. प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
  111. अध्याय - 23 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
  112. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की शैलीगत विशेषताओं को निरूपित कीजिए।
  113. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की भाव-पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  114. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की भाषागत विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
  115. प्रश्न- भारतेन्दु जी के काव्य की कला पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए। उत्तर - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की कलापक्षीय कला विशेषताएँ निम्न हैं-
  116. अध्याय - 24 जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग )
  117. प्रश्न- सिद्ध कीजिए "प्रसाद का प्रकृति-चित्रण बड़ा सजीव एवं अनूठा है।"
  118. प्रश्न- जयशंकर प्रसाद सांस्कृतिक बोध के अद्वितीय कवि हैं। कामायनी के संदर्भ में उक्त कथन पर प्रकाश डालिए।
  119. अध्याय - 25 सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (व्याख्या भाग )
  120. प्रश्न- 'निराला' छायावाद के प्रमुख कवि हैं। स्थापित कीजिए।
  121. प्रश्न- निराला ने छन्दों के क्षेत्र में नवीन प्रयोग करके भविष्य की कविता की प्रस्तावना लिख दी थी। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  122. अध्याय - 26 सुमित्रानन्दन पन्त (व्याख्या भाग)
  123. प्रश्न- पंत प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। व्याख्या कीजिए।
  124. प्रश्न- 'पन्त' और 'प्रसाद' के प्रकृति वर्णन की विशेषताओं की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए?
  125. प्रश्न- प्रगतिवाद और पन्त का काव्य पर अपने गम्भीर विचार 200 शब्दों में लिखिए।
  126. प्रश्न- पंत के गीतों में रागात्मकता अधिक है। अपनी सहमति स्पष्ट कीजिए।
  127. प्रश्न- पन्त के प्रकृति-वर्णन के कल्पना का अधिक्य हो इस उक्ति पर अपने विचार लिखिए।
  128. अध्याय - 27 महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
  129. प्रश्न- महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का उल्लेख करते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
  130. प्रश्न- "महादेवी जी आधुनिक युग की कवियत्री हैं।' इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।
  131. प्रश्न- महादेवी वर्मा का जीवन-परिचय संक्षेप में दीजिए।
  132. प्रश्न- महादेवी जी को आधुनिक मीरा क्यों कहा जाता है?
  133. प्रश्न- महादेवी वर्मा की रहस्य साधना पर विचार कीजिए।
  134. अध्याय - 28 सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' (व्याख्या भाग)
  135. प्रश्न- 'अज्ञेय' की कविता में भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों समृद्ध हैं। समीक्षा कीजिए।
  136. प्रश्न- 'अज्ञेय नयी कविता के प्रमुख कवि हैं' स्थापित कीजिए।
  137. प्रश्न- साठोत्तरी कविता में अज्ञेय का स्थान निर्धारित कीजिए।
  138. अध्याय - 29 गजानन माधव मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
  139. प्रश्न- मुक्तिबोध की कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  140. प्रश्न- मुक्तिबोध मनुष्य के विक्षोभ और विद्रोह के कवि हैं। इस कथन की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
  141. अध्याय - 30 नागार्जुन (व्याख्या भाग)
  142. प्रश्न- नागार्जुन की काव्य प्रवृत्तियों का विश्लेषण कीजिए।
  143. प्रश्न- नागार्जुन के काव्य के सामाजिक यथार्थ के चित्रण पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
  144. प्रश्न- अकाल और उसके बाद कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
  145. अध्याय - 31 सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' (व्याख्या भाग )
  146. प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  147. प्रश्न- 'धूमिल की किन्हीं दो कविताओं के संदर्भ में टिप्पणी लिखिए।
  148. प्रश्न- सुदामा पाण्डेय 'धूमिल' के संघर्षपूर्ण साहित्यिक व्यक्तित्व की विवेचना कीजिए।
  149. प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
  150. प्रश्न- धूमिल की रचनाओं के नाम बताइये।
  151. अध्याय - 32 भवानी प्रसाद मिश्र (व्याख्या भाग)
  152. प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  153. प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र की कविता 'गीत फरोश' में निहित व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
  154. अध्याय - 33 गोपालदास नीरज (व्याख्या भाग)
  155. प्रश्न- कवि गोपालदास 'नीरज' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  156. प्रश्न- 'तिमिर का छोर' का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
  157. प्रश्न- 'मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ' कविता की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।

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